गुरूद्वारा श्री गुरु हरि राय साहिब जी (सातवीं पातशाही) में देहरा खास की संगतो द्वारा 327वां खालसा साजना दिवस बड़ी श्रधा से मनाया गया

देहरादून

गुरुद्वारा श्री गुरु हरिराय साहब जी टी एच डी सी कॉलोनी देहरा खास में 327वां खालसा साधना दिवस बड़े धूमधाम व श्रद्धा से मनाया गया जिसमें देहरा खास में रह रही सभी धर्मों की संगत ने गुरुद्वारे में माथा टेक कर गुरु साहिब का आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर सुबह 4.45 से दीवान प्रारम्भ होकर गुरबाणी का पाठ , कथा व कीर्तन हुआ जिसमें गुरु घर के प्रसिद्ध रागी भाई करम सिंह जी व भाई जसवीर सिंह जी द्वारा शबद “*गगन दमामा बाजिओ परिओ नीसानै घाउ ।।* व शबद *”तुम् करहु दइआ मेरे साई। ऐसी मत दीजै मेरे ठाकुर सदा सदा तुधु धिआई।*

गायन कर संगतो को निहाल किया।

दीवान की समाप्ति अरदास व गुरु के हुकमनामा से हुईं।

उपरान्त गुरु का अतुट लंगर वरताया गया।

इस अवसर पर गुरु घर के वजीर भाई करम सिंह जी द्वारा उन संगत को स्मृति

चिन्ह देकर सम्मानित किया जिन्होंने गुरु घर आकर निष्काम सेवा की है।

इस मौके पर *प्रधान एच0 एस0 कालड़ा * द्वारा श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा साजना दिवस व वैसाखी माह के पर्व को मुख रखते हुए इतिहास पर प्रकाश डाला और बताया* *कि गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना जीवन व परिवार सनातन धर्म को बचाने में व खालसा पंथ की स्थापना में बलिदान कर दिया और सरबंस दानि कहलाये*।

*गुरु गोविन्द सिंह जी ने हमें सत्य, करुणा और सेवा का मार्ग दिखाया।*

*खालसा के निर्माता: गुरु जी ने 1699 ईस्वी में खालसा पंथ की स्थापना की, जो विश्व महत्व की घटना थी। गुरु जी ने उत्पीड़ित जनता को समझाया कि कोई भगवान या देवी स्वर्ग से उनकी रक्षा के लिए नहीं आएगी।*

*बैसाखी के दिन 1699 ईस्वी में आनंदपुर साहिब में 5 सिखों ने गुरु जी के आह्वान पर अपने सिर समर्पित किए। इन पांच सिखों को गुरु गोबिंद सिंह जी ने अमृत देकर खालसा पंथ में दीक्षित किया।*

 

*इन पांच प्यारों को गुरु जी ने खालसा का नाम दिया और उन्हें सिंह की उपाधि दी। गुरु जी ने स्वयं भी इन पांच प्यारों से अमृत लेकर खालसा पंथ में दीक्षित हुए।*

 

*गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा, “खालसा मेरा रूप है खास, खालसा में मैं करूं निवास। खालसा मेरी जान की जान!”*

 

गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को सिख धर्म के अगले गुरु के रूप में स्थापित किया। *गुरु जी ने कहा, “आज्ञा भाई अकाल की, तभी चलायो पंथ। सब सिखों को हुक्म है गुरु मान्यो ग्रंथ।”*

 

इस प्रकार, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म महान बौद्धिक उपलब्धियों के साथ हुआ था। गुरु जी एक भाषाविद थे और अरबी, फारसी, संस्कृत और पंजाबी से परिचित थे। गुरु जी ने सिख कानूनों को संहिताबद्ध किया, युद्ध कविता और संगीत लिखा। गुरु जी दसम ग्रंथ के रचयिता थे।

इस अवसर पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य *परवीन मल्होत्रा*

*हरजीत सिंह* *विजय खुराना*

*अजीत सिंह, हरमीत सिंह* *मेजर सिंह, *अमरजीत सिंह सौंधी* आदि मौजूद रहकर आज के दीवान को सफल बनाने में पूरा

सहयोग दिया।

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