उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी की स्थापना
बसंत पंचमी के दिन चलत मुसाफ़िर और बस्तापैक एडवेंचर ने साथ मिलकर दो कार्यक्रम का आयोजन किया। पहला कार्यक्रम था, उत्तराखंड की पहली स्ट्रीट लाइब्रेरी की स्थापना, जिसका उद्घाटन उत्तराखंड रत्न पद्मश्री योगी एरन ने किया। यह लाइब्रेरी तपोवन के सार्वजनिक घाट में लगाई गई है। इस मौके पर योगी एरन ने टीम की प्रसंशा करते हुए कहा, “हमें ऐसे ही युवाओं की ज़रूरत है जो सोसाइटी के बारे में सोचे। चलत मुसाफ़िर की फाउंडर मोनिका मरांडी और प्रज्ञा श्रीवास्तव, बस्ता पैक के फाउंडर गिरिजांश गोपालन और प्रदीप भट्ट की ये मुहिम कई युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। ” घाट पर आए पर्यटकों ने लाइब्रेरी को देखते हुए टीम से ये राय साझा की, “स्ट्रीट लाइब्रेरी एक बेहतरीन मुहिम है और ऐसी मुहिमों को लगातार होना चाहिए। ऐसी मुहिम से लोगों को पढ़ने की इच्छा जागेगी जो पैसों के अभाव में पढ़ नहीं पाते हैं।”
बस्तापैक एडवेंचर के सह-संस्थापक गिरिजांश के मुताबिक, “ये तो बस शुरुआत है, हम उत्तराखंड के रिमोट एरिया तक किताबें पहुंचाना चाह रहे हैं। गांवों-गलियों तक अलग-अलग किस्म की किताबें पहुंचे, ये हमारा उद्देश्य है।”
चलत मुसाफ़िर की सह-संस्थापक मोनिका मरांडी के मुताबिक, “ज्ञान बांटने से बढ़ता है, आप शहरों से अपनी किताबें हमारे पास भेजिए, हम उसे उन बच्चों और जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाएंगे जो सिर्फ विकल्पों के अभाव में किताबों से वंचित रह जाते हैं।”
इस खूबसूरत शुरुआत के साथ दिन को आगे बढ़ाते हुए दोनों टीम बस्तापैक कैंपसाइट पर आई जहां दूसरा कार्यक्रम था स्मृति वृक्ष कैंपेन की शुरुआत, जिसका उद्घाटन पद्मभूषण अनिल जोशी जी ने किया। इस मुहिम के तहत चलत मुसाफ़िर और बस्तापैक एडवेंचर की टीम लोगों को ये अपील कर रही है, “आपके जो भी प्रियजन जो अब शारीरिक तौर पर इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन आप उनकी स्मृतियों को सहेज कर रखना चाहते हैं, उनके नाम का एक पौधा बस्तापैक कैंपसाइट पर आकर लगाएं। हमारी टीम उनके नाम का एक प्लेट लगाएगी ताकि पौधा बढ़ने के साथ-साथ उसकी पहचान आपके प्रियजन के नाम से रहे।”
अनिल जोशी जी ने अपना पहला पेड़ माँ प्रकृति को समर्पित किया क्योंकि हमारे लिए प्रकृति भी मर रही है। इस कार्यक्रम पर अपनी राय साझा करते हुए कहा, “पहाड़ों पर टूरिज्म पर बिज़नेस तो बहुत लोग करते हैं पर हमें एक रिसपॉन्सिबल टूरिज्म इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है। हमें प्रकृति की ओर लौटना चाहिए, जो ज्यादातर लोग करना भूल जाते हैं। चलत मुसाफ़िर और बस्ता पैक की टीम इसे बखूबी आगे बढ़ा रही है। इस इसके लिए में दोनों टीमों की तारीफ करना चाहूंगा कि जो यहां उत्तराखंड के लोग नहीं कर पा रहे हैं, वो काम ये दोनों टीमें कर रही है।”